मानव अधिकार से तात्पर्य उन सभी अधिकारों से है जो व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता, समानता एवं प्रतिश्ठा से जुड़े हुए हैं। यह अधिकार भारतीय संविधान के भाग-तीन में मूलभूत अधिकारों के नाम से वर्णित किये गये हैं और न्यायालयों द्वारा प्रवर्तनीय है । इसके अलावा ऐसे अधिकार जो अन्तर्राश्ट्रीय समझौते के फलस्वरूप संयुक्त राश्ट्र की महासभा द्वारा स्वीकार किये गये है और देष के न्यायालयों द्वारा प्रवर्तनीय है, को मानव अधिकार माना जाता है । इन अधिकारों में प्रदूशण मुक्त वातावरण में जीने का अधिकार, अभिरक्षा में यातनापूर्ण और अपमानजनक व्यवहार न होने संबंधी अधिकार, और महिलाओं के साथ प्रतिश्ठापूर्ण व्यवहार का अधिकार षामिल है।
अधिनियम के अन्तर्गत किसी षिकायत की जांच करते समय आयोग को सिविल प्रक्रिया संहिता-1908 के अन्तर्गत सिविल न्यायालय के समस्त अधिकार प्राप्त हैं। विषेश रूप से संबंधित पक्ष को तथा गवाहों को सम्मन जारी करके बुलाने तथा उन्हें आयोग के सामने उपस्थित होने के लिए बाध्य करने एवं षपथ देकर परीक्षण करने का अधिकार, किसी दस्तावेज का पता लगाने और उसको प्रस्तुत करने का आदेष देने का अधिकार, षपथ पर गवाही लेने का अधिकार और किसी न्यायालय अथवा कार्यालय से कोई सरकारी अभिलेख अथवा उसकी प्रतिलिपि की मांग करने का अधिकार। गवाहियों तथा दस्तावेजों की जाॅंच हेतु कमीषन जारी करने का अधिकार। आयोग में पुलिस अनुसंधान दल भी है। जिसके द्वारा प्रकरणों की जाॅंच की जाती है।
मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम-1993 के अन्तर्गत मध्यप्रदेष मानव अधिकार आयोग के द्वारा निम्नलिखित कार्य किये जाएंगें-
1- आयोग अपनी ओर से स्वयं अथवा पीड़ि़त द्वारा अथवा उसकी ओर से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा प्रार्थना पत्र देकर षिकायत करने पर कि, किसी षासकीय सेवक द्वारा मानव अधिकारों का हनन किया गया है अथवा ऐसा करने के लिये उकसाया गया है अथवा उसने ऐसा हनन रोकने की उपेक्षा किया है, तो ऐसी षिकायतों की जाॅंच करना।
2- किसी न्यायालय में विचारधीन मानव अधिकारों के हनन के मामले में संबंधित न्यायालय के अनुमोदन से ऐसे मामले की कार्यवाही में भाग लेगा।
3- राज्य सरकार को सूचित करके, किसी जेल अथवा राज्य सरकार के नियंत्रणाधीन किसी ऐसे संस्थान का जहाॅं लोगों को चिकित्सा सुधार अथवा सुरक्षा हेतु निरूð रखा अथवा ठहराया जाता है वहां के निवासियों की आवासीय दषाओं का अध्ययन करने के लिये निरीक्षण करना और उनके बारें में अपने सुझाव देना।
4- संविधान तथा अन्य किसी कानून द्वारा मानव अधिकारों के संरक्षण के लिये प्रदत्त रक्षा उपायों की समीक्षा करना और उनके प्रभावी कार्यान्वयन के संबंध में सुझाव देना।
5- आतंवाद एवं ऐसे सारे क्रिया-कलापों की समीक्षा करना, जो मानव अधिकारों का उपभोग करने में बाधा डालते हैं तथा उनके निवारण के लिए उपाय सुझाना।
6- मानव अधिकारों से संबंधित अनुसंधान कार्य को अपने हाथ में लेना एवं उसे बढ़ावा देना।
7- समाज के विभिन्न वर्गों में मानव अधिकार संबंधी षिक्षा का प्रसार करना तथा प्रकाषनों, संचार माध्यमों एवं संगोश्ठियों और अन्य उपलब्ध साधनों द्वारा मानव अधिकार संबंधी रक्षा उपायों के प्रति जागरूकता लाना।
8- मानव अधिकारों की रक्षा करने या करवाने के क्षेत्र में क्रियाषील गैर सरकारी संगठनों तथा संस्थाओं के प्रयासों को प्रोत्साहन देना।
9- मानव अधिकारों की समुन्नति के लिये आवष्यक समझे गये अन्य कार्य करना।
सुभकामनाओं सहित,
आपका
मौहम्मद तारीक़
राष्ट्रीय अध्यक्ष
अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार सुरक्षा परिषद